"मंजर बदल गए .." (चर्चा मंच-९४७)
अरे वाह...!
इतनी जल्दी शनिवार आ गया!
अब शनीचर आ ही गया है
तो देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक!
सबसे पहले शुक्रिया अदा करता हूँ,
निम्न टिप्पणीपुरोधाओं का
जिन्होंने कल शुक्रवार को
सर्वाधिक टिपियाया था "चर्चा मंच" को!
डॉ. सुशील जोशी
अब शुरू करता हूँ चर्चा के सिलसिले को-(०)
सबसे पहले शुक्रिया अदा करता हूँ,
निम्न टिप्पणीपुरोधाओं का
जिन्होंने कल शुक्रवार को
सर्वाधिक टिपियाया था "चर्चा मंच" को!
डॉ. सुशील जोशी
अब शुरू करता हूँ चर्चा के सिलसिले को-
(००)
जलें दीप ,
उत्सव मनाएं बार ,
अब तो दुआओं में, कसीना है ,
थे दुश्मन के ,
इंतजामात कभी
अब खुशहाली का नगीना हैं..
(०१)
तेरे जहान में बेफल शजर नहीं मिलता
बस एक अश्क है जिसका समर नहीं मिलता..
(०२)
यह विषय था इस बार शब्दों की चाक पर ...
इस विषय पर लिखी है हास्य व्यंग कविता .
पढ़ कर बताये की कैसा लगा यह प्रयास...
(०३)
अनवरत बहते हैं इन आखों से ये आंसू
फिर भी तेरी एक मुस्कान मुझसे ,
मेरी ही जिंदगी की खाहिश किये जाती हैं ,
मुझे कहे जाती हैं ।
अनु !
मेरी अनु !
तुम मेरे लिएजी लो....
(०४)
नहीं मिलता यहाँ पर, अब हुनर तालीमख़ानों में।
पढ़ाई बिक रही अब तो, धड़ल्ले से दुकानों में।।
कहें हम दास्तां किससे, सुनेगा कौन जनता की?
दबी आवाज तूती की, यहाँ नक्कारखानों में...
(०५)
कार्तिक सुदी दशमी को नन्दबाबा ने एकादशी व्रत किया
द्वादशी मे व्रत का पारण करने हेतु पहर रहते यमुना मे प्रवेश किया
वरुण देवता के दूत पकड कर ले गये
इधर सुबह हुयी तो नन्दबाबा ना कहीं मिले
सारे मे हा-हाकार मच गया...
(०६)
१. मेघ गरजा
टिप टिप बरसा
मन हरषा|
२. पानी बरसा
सोंधी खुशबू उड़ी
धरती धुली|...
(०७)
सिलवट पर पिसता रहा, याद वाद रस प्रेम ।
ऐ लोढ़े तू रूठ के, भाँड़ रहा है गेम...
(०८)
पिछले आलेख के साथ वादा था कि गज़ल पूरी सुनाऊंगा
तो पढ़िये पूरी…और हाँ. मेरी आवाज में सुनना हो तो कमेंट करो..
अगली पोस्ट में गा कर सुनायेंगे एक अलग अंदाज में..
(०९)
*डिवोर्स*
सपनों का घरौंदा
चांद, तारे, शबनम, कुहरा...
सब का थोड़ा-थोड़ा हिस्सा
जोड़ कर बनता है एक पूरा आसमां
और कभी किसी रात के
सन्नाटे में बिखर जाता है चाँद...
(१०)
द लास्ट माईल
मेरे जिस्म के पिंजर से एक रोज़,
उड़ जाएगा मेरी रूह का पंछी!
जब होगा मुझे विसाल-ए-यार!
मौला! क्या वो मंज़र होगा!
जब मौत की आग़ोश में सोऊंगा,
गेसूओं में ऊँगली पिरोऊंगा!
जब मिलेगा मुझसे मेरा यार,...
(११)
किसी बुलबुल का अपने ही गीतों को मानो भूल जाना
किसी घायल चिरइया का अपने बचे हुए पंख गिनना
प्यासे राही का मरीचिका के भ्रम में छाले कमाना ..
(१२)
इस ब्लॉग के माध्यम से हम जानने की कोशिश करेंगे
उस सबसे बड़े शिक्षक के बारे में
जिसने इस अस्त होते भारत को
एक नयी ज्योति दिखाई और भारत को
अपने ज्ञान के सहारे उस मुकाम तक ले गया
जहाँ उसे सोने की चिड़िया का दर्जा दिया गया...
(१३)
आज हमारा समाज हर तरह से तरक्की की राह पर है।
अगर हम तुलना करें तो, पहले से बेहतर,
शिक्षा, स्वास्थ्य व अन्य सुविधायें आम जनों को उपलब्ध होने लगी है।
लेकिन हम उतने ही संवेदनहीन होते जा रहे हैं।
आखिर इसका क्या कारण है?
कोई दिन ऐसा नहीं गुजरता जब कहीं ना कहीं
किसी ना किसी मासूम या गरीब की इज्जत से खिलवाड़ किया जाता है
और हम चुपचाप एक तमाशाई की तरह देखते रहते हैं...
(१४)
शायद हमारा प्रेम ईश्वर ने अपनी कलम से लिखा है
तभी तो ये है उसी की तरह पावन, उसी की तरह कोमल...
और भावनाएँ भी इस तरह अश्रु के रूप में झरती हैं
मानों प्रभु खुद अपने भक्त के लिए रो रहा हो...
(१५)
अब अगर उल्टी आती है
तो कैसे कहें उससे कम आ
पूरा मत निकाल थोड़ा सा छोटे छोटे हिस्सों में ला
पूरा निकाल के लाने का कोई जी ओ आया है क्या ...
यही सदियों से होता है
यही सदियों तलक होगा
कि परवाना तड़पता है
शमा का दिल भी जलता है...
(१७)
सुर है लेकिन ताल नहीं है बाबाजी
पॉकेट है पर माल नहीं है बाबाजी
क्योंकर कोई चूमे हमको सावन में
अपने चिकने गाल नहीं है बाबाजी...
(१८)
(१९)
उम्मीदों का कोना
लहू से लथपथ, उम्मीदों का कोना है,
कि मैं घडी भर हूँ जागा, उम्र भर सोना है...
(२०)
"लेखन एक अनवरत यात्रा है -
जिसका न कोई अंत है न मंजिल ", और यह सच भी है।
निरंतर अपने भावों को कलम बद्ध करना ही
इस यात्रा की नियति होती है।...
(२१)
करे खुदाई कुछ नहीं, खड़े देवगण व्योम ।
एक बार दिल्ली तकें, ताक रहे फिर रोम ।
ताक रहे फिर रोम, सकल कुल नेहरु गाँधी ।
ब्रह्मलोक हथियाय, नियन्ता-मेधा बाँधी...
(२२)
सत्यमेव जयते आज की तारीख में यह एक बहू चर्चित कार्यक्रम है।
जिसमें दिखाये जाने वाले सभी विषय हमारे समाज के लिए कोई नये नहीं है...
जब भी मिलता है बड़े तपाक से मिलता है ...
(२४)
बस चंद पल और यहाँ
फिर डेरा डंडा
समेटना होगा
फूल जो उगा है मस्ती में
शाम होते ही उसे
झर जाना होगा..
(२५)
बहुत कुछ छुपाना चाहा है, ज़िदगी के पन्नों में,
पर छिपता नहीं, बात अपने हिसाब की, किताब की है,
उधार लिया भी अपनों से , उधार दिया भी अपनों ने...
(२६)
ये बारिश से भीगा मौसम...
और तुम्हारे प्यार से भीगा मेरा मन......
इस बार झूम कर आया है....ये सावन.......
कुछ मैंने की थी ख्वाइश,
कुछ बूंदों ने की हैं साजिश.......
-0-0-0-
आज के लिए केवल इतना ही।
कल फिर मिलूँगा कुछ लिंकों के साथ।
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